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निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।

नहीं होती परंतु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है। 

यह है तीनों मंत्रों की विविचना । अब आप पर निर्भर है कि आप इन तीनों का प्रयोग कैसे करें। अब इन मंत्रों में किसको श्रेष्ठ कहा जाय। मेरा मानना है आपको जो अच्छा लगे। जो अवचेतन में आ जाये। स्वप्न में आ जाये। आप उसी को जाप हेतु प्रयोग करें। अपना जाप सतत निरन्तर निर्बाध चालू कर दे। आप देखेगें चमत्कारिक परिवर्तन अपने जीवन में और अपने शरीर के भीतर।

बीज की मंत्र सामर्थ का विस्तार है। इसके पश्चात मध्यमचरित्र में माता महालक्ष्मी की मांत्रिक महिमा हीं check here बीज के

* दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को

ह्रीं अर्धकायं महावीर्य चंद्रादित्य विमर्दनम्।

सरस्वती की मंत्र महिम के रूप में प्रकट हुई है।

धीमहि:अर्थात् रात्रि और दिन हमारे लिए सुखकारण हों। पृथ्वी की रज हमारे लिए मंगलमय हो। धियो यो न: प्रचोदयात्: अर्थात्

कमण्डलु धारण करती हैं। इनका वाहन हंस है तथा इनकी कुमारी अवस्था है। इनका यही स्वरूप ब्रह्मशक्ति गायत्री के नाम से प्रसिद्ध है। इसका वर्णन ऋग्वेद

है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी

है। जिसको स्वयं हनुमान जपते हैं। अत: यह कमजोर कैसे हुआ। वहीं बिठठल तो तुकाराम नामदेव

अक्षस्त्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनु: कुण्डिकां

दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने

बेहतर अनुभव के लिए अपनी सेटिंग्स में जाकर हाई मोड चुनें।

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